आलेख : पैगामे कर्बला

।। ताजुद्दीन अंसारी।।

आजकल आलमे इस्लाम शोहदाये कर्बला हज़रत इमाम हुसैन रज़ि0 की याद में मशगूल होकर न्याज ओ नज़्र करने में लगा है। और क्यों न करे क्योंकि —

क़त्ले हुसैन अस्ल में मरगे यज़ीद है
इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद।।

शोहदाये कर्बला की याद करना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि वाक्याते कर्बला इस्लाम की तस्वीर है, क़ुरआन की तफ़सीर, ईमान की पुख़्तगी की दलील, इंसानियत की तहरीर है। ये मोमिनों के हयात की अलामत, सब्र की दलील के साथ ही नमाज़ और रूखे काबा की अज़मत को दिलों में उतारने की तदवीर है, ऐसे में अगर कोई सच्चा मुसलमान होने का दावा करे और उसके दिल मे अज़्मते मुस्तफ़ा, अज़्मते नमाज़, अज़्मते क़ुरआन और अज़्मते काबा नहीं है तो वो मुसलमान कैसा ?

तड़प उठता है दिल, लफ़्ज़ों में दोहराई नहीं जाती।
ज़ुबां पर कर्बला की दास्तां, लाई नहीं जाती।।

हज़रत इमाम हुसैन को दुनिया की दौलत, मसनद, शोहरत की तलब होती तो वह अपने 6 माह के मासूम असग़र, जवान अकबर, भाई, भतीज़ों, भांजों और अपने जांनिसार अंसार की कुर्बानी न देते और न ही वह इन्हें अपने साथ लेकर जाते। उन्हें तो कूफ़ा वालों ने सैकड़ों ख़त भेजकर बुलवाया था। जिसमें यह लिखा था कि हम आपके जांनिसार हैं और हम आपकी बैअत करना चाहते हैं। आप आ जाएं अगर आप नहीं आये तो हम रोज़े महशर आपके नाना हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा स0अ0व0 से आपकी शिकायत करेंगे। यही वजह थी कि इस्लाम और नाना की शरीयत को बचाने के लिए आपको जाना पड़ा।
रास्ते में कर्बला के मुक़ाम पर यजीदी फौजों ने उन्हें घेर लिया।हुर यजीदी फौज के सिपहसालार थे। हुर ने हज़रत हुसैन को यज़ीद का फ़रमान सुनाया, कि हुसैन या तो हमारी बैअत कुबूल करें या फिर जंग के लिए तैयार रहें। चूंकि हुर यज़ीदी फ़ौज के सिपहसालार थे फिर भी हज़रत इमाम हुसैन ने, न सिर्फ हुर बल्कि उनकी फ़ौज यहां तक कि उनके घोड़ों तक को सैराब किया। हुर जहाँ हज़रत इमाम हुसैन के किरदार से मुतास्सिर हुए वही उनके दिल में नबी ए करीम स0अ0व0 से उल्फ़क़त भी थी। उन्होंने हज़रत इमाम हुसैन से इस्लाम कुबूल करने की दरख्वास्त की जिसे इमामे आली मक़ाम ने कुबूल कर लिया। हज़रते हुर कर्बला में शहीद होने वाले पहले शोहदा हैं। यजीदी फौज ने हज़रत इमाम हुसैन के सभी साथियों का पानी बन्द कर दिया और जंग हुई और देखते ही देखते सभी शहीद हो गए। आखिर में मुहर्रम की 10 तारीख दिन जुमा वक़्ते ज़ुहर तनहे तनहा इमाम हुसैन थे और जंग में सैकड़ों यजीदियों को जहन्नुम पहुँचा दिया। ये देखकर यजीदी फ़ौज ने एक साथ मिलकर चारों तरफ से हमला किया जिससे अतहर में जब 72 ज़ख्म हो गए तभी नमाज़ का वक़्त हुआ आप लड़खड़ाते हुए घोड़े से नीचे आये और काबे की तरफ रुख़ किया और सज़दे के चले गए। ज़ालिम यजीदियों ने सज़दे की हालत में आप की गर्दन पर तेग चलाकर शहीद कर दिया। इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन।।

कर्बला में एक अली का लाड़ला सज़दे में है।
और फ़लक पर उसको देखता ख़ुदा सज़दे में है।
मसलहत इसमें कोई तहसीन है अल्लाह की।
अल्लाह अल्लाह पैकरे सब्रे रज़ा सज़दे में है।।

दुनिया की तारीख में किसी मज़हब के अंदर ऐसा वाक्या नहीं है जिसमें औलाद घरबार को कुर्बान करके जंग जीती गयी हो। आज जहाँ यजीद का कहीं नामोनिशान नहीं है लेकिन इस्लाम की फसल दुनिया में लहलहा रही है। अगर इमाम हुसैन रज़ि0 यजीद की बैअत कुबूल कर लेते तो न ही शरीयत और क़ुरआन की अज़मत होती और न ही नमाज़ और काबे की अज़्मत होती। बल्कि वह तमाम बातें जो क़ुरआन और शरीयत में हराम की गईं जिनका यजीद आदी था, जैसे जुआं, शराब, जिनाखोरी, सूदखोरी यह सभी जायज़ करार दी जातीं।
लेकिन आजकल कुछ ऐसे भी मुसलमान हैं जो नबी करीम स0अ0व0 और इमामे आली मुकाम से मुहब्बत का दम तो भरते हैं लेकिन नबी की शरीयत, क़ुरआन, नमाज़ और काबे की अज़्मत को नजरअंदाज करके उन्हीं हराम कामों में मुब्तिला हैं जिसकी वजह से वाक्याते कर्बला पेश आया। यह मुसलमान कैसे हो सकते हैं। अल्लाह से मेरी दुआ है कि सभी मुसलमानों को शोहदाये कर्बला से उल्फत, शरीयत पर चलने, क़ुरआन, क़ाबा और नमाज़ की अज़्मत को समझने की तौफीक अता फ़रमाये और बुरे कामों से बचने की हिदायत फ़रमाये।।। आमीन।।।

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